हमारे ऋषि-मुनियों व वीर योद्धाओं ने पंचमुखी हनुमान साधना सम्पन्न कर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया है। विश्वामित्र, वशिष्ठ, वाल्मीकि, गोरखनाथ, शंकराचार्य आदि ने स्वयं यह साधना सिद्ध कर अपने शिष्यों को भी सम्पन्न कराई। इस साधना ने 12 वर्ष के लव को इतना अधिक पराक्रमी बना दिया कि उसने अपने भाई कुश के साथ मिल कर भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़ों को रोक दिया। महाभारत यु़द्ध के समय पांडव जब भगवान कृष्ण के पास सहायता के लिए गए तो स्वयं कृष्ण ने उन्हें पंचमुखी हनुमान साधना करने की सलाह दी, जिसे सम्पन्न करने पर ही पांडव युद्ध में विजय प्राप्त सके। रुद्र संहिता और पंचमुखी हनुमान धारा के अनुसार पंचमुखी हनुमान साधना से असंभव से असंभव कार्य को भी सहज रूप में सम्पन्न किया जा सकता है। इस साधना से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं।
पंचमुखी हनुमान साधना हनुमान जयंती या किसी भी मंगलवार की रात्रि में की जा सकती है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें। अपने सामने लाल कपडे़ पर पंचमुखी बजरंग यंत्र स्थापित कर उसका चमेली के इत्र, सिंदूर, लाल फूल, बेसन के लड्डू और फल आदि से पूजन करने के बाद तेल का दीपक एवं सुगंधित धूप प्रज्ज्वलित करें और मूंगे की माला से 21 माला 'ऊं हुं हुं हसौं हस्फ्रौं हुं हुं हनुमंते नम:' मंत्र का जप आठ दिन तक करें। अंतिम दिवस इसी मंत्र की 108 आहुतियां गाय के घी की अग्नि में देकर अनुष्ठान पूर्ण करें। पंचमुखी हनुमान साधना में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, हनुमान जी को लाल पुष्प चढ़ाएं, भूमि पर शयन करें और जो प्रसाद चढ़ाएं, उसे गाय के घी में शुद्धतापूर्वक बनाएं।