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अमरनाथ यात्रा वृत्तांत - रामकिंकर सिंह परिहार

 
अमरनाथ यात्रा वृत्तांत -  रामकिंकर सिंह परिहार 

अमरनाथ यात्रा मैंनें अपनें जीवन में तीन बार की है वैसे तो पूरा देश भ्रमण कर चुका पर अमरनाथ की यात्रा और हमारे जीवन का सफर दोनों लगभग एक समान ही है। आइये अनुभव करें.....


अमरनाथ यात्रा के लिए 

मजबूत शरीर तो आवश्यक है पर उससे ज्यादा दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है ,बचपना जैसे  बेपरवाही ,रोमांच आनंद  और से गुजरता है वैसे ही अमरनाथ के लिए ट्रेन में चढते समय रोमांच और आनंद का अनुभव होता है,

जब हम बीसवें  वर्ष म़े कदम रखते हैं तब हमें दुनियां दुर से बहुत आकर्षित और सुंदर लगता है ,वैसे ही जैसे  सुबह सुबह बस से पहलगाम पहुंचनें पर  सूर्य की पहली किरण के साथ आसमान छूती  बर्फिली चोंटियां कलकल नदी का अद्भूत दृश्य देखकर लगता है ऊर्जा और रोमांच के साथ अजीब सी आनंद से भर देनें वाला अहसास....

जैसे जैसे आप पहलगाम से आगे चंदनवाड़ी पहुंचते हैं तब एक कठिन सफर बेहद थकानें वाली यात्रा का आरंभ होता है। 

  कंकड़ पत्थरों से भरी हुई खडी पिस्सू  टाप नाम की पहाडी़ हमारे नजरों के सामने़ आता है  तो उसे देखकर ही मन जवाब दे देता है ,फिर आरंभ होता है हौंसला और शरीर की क्षमता की कठिन परीक्षा..साँसों का पल उखड़ना  नीचे खडी ढलान ,लगता है जैसे बस जीवन समाप्त ही हो जायेगा या तो गिर जाऊंगा या साँसे उखड ही जायेंगी... 

पहाडी चढ़नें पर एक अजीब शांति और आनंद का अनुभव होता है,ये वैसा ही है जैसे बीस वर्ष का बेरोजगार युवा घर परिवार की उलाहना के साथ पैसों की तंगी जैसी पहाड समान समस्याओं से पार पाकर एक व्यवस्थित रोजगार का साधन पा जाता है बस वैसा सी कुछ अनुभव उस यात्रा के प्रथम पड़ाव का रहता है। 

पच्चीस से चालीस पैंतालीस वर्ष तक जीवन में इतने़ उतार चढाव आते हैं कि कभी लगता है की मेरे से खुश इंसान इस दुनियां में कोई नहीं ,कभी लगता है की इस जीवन से अच्छा कहीं भाग जाऊं समस्याओं का कोई अंत नजर नहीं आ रहा,कभी सोचता है की मर ही जाना बेहतर हैं फिर भी जीवन को अपनी इच्छाशक्ति और भविष्य के प्रति आशान्वित दृष्टिकोण रखते हुए आगे बढते रहता है। 

वैसे ही जैसे ही हम पिस्सू टाप से शेषनाग तक का सफर करते हैं तब अनुभव होता है,संकरे रास्ते, ठंडी हवा, गहरी खाईयाँ ऐसा डर लगता है की बस अब मरूं की तब,कभी खतरनाक दुर्गम बेहद संकरे रास्ते कही खडी़ चढाई शरीर मन दोनों टूट जाता है लगता है वापस हो जाऊं कहां गया फिर अचानक बहुत सुंदर छोटे छोटे फुल खिले हुई पहाडी़ जहाँ घोडे बकरी घास चरते नजर आते हैं तब लगता है की मैं दुनियाँ का सबसे खुश नसीब इंसान हूं जो यहां पर अभी हुं  आगे का सफर प्रभु के प्रति अगाध श्रद्धा और स्वयं का आत्मबल हमें आगे की सफर के लिए पुनः तैयार कर लेता है। 

पैतालीस से पचपन साठ वर्ष के मनुष्य का जीवन लगभग स्थिर सा  रहता है परिवार नाती पोतों और

 अर्जित धन के साथ आनंद से जीवन व्यतीत करता है। हां आनें वालें बुढापे के प्रति असुरक्षा और स्वास्थ्य की चिंता भी धीरे धीरे घेरनें लगती है। 

वैसे ही जैसे यात्रा आगे बढाते हुए शेषनाग से पंचतरणी पहुंचते हैं तो पुरे सफर का थकान गायब हो जाता है शरीर की पूरी थकान  दूर मन आसपास बहते नदी की धार और आसमान  छूति चोंटि को देखकर आत्मा तृप्त हो जाती है। साथ ही दुसरे दिन पुरे सफर का सबसे  कठिन और खडी़ चढा़ई चढ़नें के लिए मन बडा आशंकित रहता है की कैसे कल का सफर  पूरा होगा अभी तो मस्त नजारे का आनंद ले रहे पर कल क्या होगा ये सोचकर मन कहीं ना कहीं थोडा डरा रहता है,वैसे ही जैसे एक पचास साठ वर्ष का आदमी अपनें भविष्य की चिंता करता है। 

साठ वर्ष के बाद का अधिकत्तर व्यक्ति शारिरिक और मानसिक परेशानी अकेलेपन के कारण अवसाद या कहें जीवन के प्रति थोडा़ उदासीन हो जाता है फिर भी अपनी जिम्मेदारी कर्तव्यों का निर्वाह कठिन परिस्थितियों में भी करता है बस जीवन के अंतिम समय में ईश्वर ही एक सहारा नजर आता है। 

ईश्वर के अलावा ना कोई समझनें वाला ना समझानें वाला परिस्थिति के आगे अपनें आपको सौंप कर जीवन प्रभु के भरोसे चुपचाप जीवन रूपी सफर को पूर्ण करनें के जद्वदोजहद में लगा रहता है। 

जब हम पंचतरर्णी जैसी सुरम्य वादियों को छोड़ आगे बढते हैं तब यात्रा की असली परीक्षा होती है ,इसे जगह को  मुक्ति का द्वार कहा जाता है,बेहद दुरूह डरावनें खडे संकरे रास्ते नीचे  हजार फिट गहरी खाई उखड़ती सांसे पुरे सफर का सबसे खतरनाक जगह। लौटनें का विकल्प नहीं बस आगे बढना है,उस समय बस एक ही सहारा होता है वो है आत्मबल और संयम सब तकलिफों के बावजूद ईश्वर पर लगातार गहरी होती आस्था।अमरनाथ यात्रा हो या जीवन सफर का आखरी पडा़व ऐसा ही होता है।

अब हम पहुंच गये बाबा अमरनाथ की गुफा में थोडी सी चढा़ई आसपास भक्तों के द्वारा जयकारे लगाते बम बम की मधुर आवाज जो एकदुसरे से टकराकर प्रतिध्वनि के रूप में पुनःबार बार एक ही शब्द गुंजता है बम बम भोले,थोडी देर में विश्व के सबसे अलौकिक पुर्ण बर्फ़ से बनें स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन होते हैं तब लगता है की अब जीवन सफल हो गया। ,इस शिवलिंग का दर्शन अपनें आपमें अद्भुत है आपका मन मस्तिष्क पुरे जीवन इसकी छवि को भुल नहीं पायेगा। 

विवेकानंद जी जब इस शिवलिंग का दर्शन किये उसके शब्द थे,इस मूर्ति के जैसा जागृत उर्जा से भरपुर मूर्ति पुरे विश्व में कहीं नहीं जीवन भर ये पल याद रहेगा।  

शिवलिंग के दर्शन पश्चात शारीरिक मानसिक थकान एकदम से गायब हो जाता है लगता है जैसे स्वर्ग में ह़ूं वहा पर घर परिवार व्यापार सब विस्मृत से हो जाते हैं। सब कष्टों से मुक्ति का द्वार अमरनाथ। 

जीवन भर संघर्ष ,सम्मान ,अपमान, सुख दुःख रुपी जीवन के सफर के अंतिम समय भी मनुष्य का चित्त ऐसे ही रहता होगा चिर निद्रा प्रभु के द्वार जहां घर परिवार व्यापार सब विस्मृत होकर  छूट जाते हैं। पूरी आत्मा शिव में लीन हो जाता है उस परमधाम से फिर आनें की कामना कोई नहीं करता,वैसे ही जैसे जो अमरनाथ एक बार चला गया उसे भी ऐसे ही अनुभव होते हैं। 

एक महत्वपूर्ण बात जीवन में व्यवसन नशा झूठ कपट स्वार्थ और आलस है उसके लिए ना तो ये मनुष्य जीवन है ना अमरनाथ यात्रा। 

जो सकारात्मकता उर्जा उच्च मनोबल ,प्रेम सर्मपण और अगाध ईश्वर के प्रति  श्रद्धा से भरा है उनके लिए चाहे मनुष्य जन्म हो या अमरनाथ यात्रा बेहद सरल रोमांचक आनंद से भरा हो सकता है। 

अभी अमरनाथ यात्रा आरंभ होनें वाला है तो मुझे भी आपको जीवन रूपी यात्रा में ले जानें की इच्छा हुई। 

जीवन का आऩद लिजिए समय मिले तो अमरनाथ यात्रा एक बार जरूर करें। 

रामकिंकर सिंह परिहार

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