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हल्के लड़ाकू विमान तेजस ने भारतीय वायु सेना में सेवा के सात वर्ष पूरे किए


1 जुलाई 2023 को स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) भारतीय वायुसेना में अपनी सेवा के सात वर्ष पूरे कर लेगा। 2003 में तेजस नाम से जाना जाने वाला यह विमान, एक बहु आयामी वायुयान है, जो अपनी श्रेणी में श्रेष्ठ में से एक है। इसे वायु रक्षा, समुद्री सर्वेक्षण और प्रहार भूमिका निभाने के लिए तैयार किया गया है। स्वाभाविक रूप से अस्थिर तेजस, निश्चित संचालन और बेहतर गति प्रदान करता है। इस क्षमता को इसके मल्टीमोड एयरबोर्न रडार, हेलमेट माउंटेड डिस्प्ले, सेल्फ प्रोटेक्शन सूट व लेज़र डेजिग्नेशन पॉड से लैस कर और बेहतर किया गया है।

तेजस को वायु सेना में शामिल करने वाला पहला स्क्वाड्रन, स्क्वाड्रन नंबर-45 ‘फ्लाइंग डैगर्स’ था। इन वर्षों में स्क्वाड्रन अपने वर्तमान ‘लड़ाकू विमान’ से सुसज्जित होने से पहले वेम्पायर से ग्नैट और फिर मिग-21 बाइसन से सज्जित हुआ। ‘फ्लाइंग डैगर्स’ द्वारा उड़ाया गया प्रत्येक विमान भारत में बना है; या तो लाइसेंस उत्पादन के तहत, या भारत में डिजाइन और विकसित किया गया है। मई 2020 में स्क्वाड्रन नंबर-18, तेजस को संचालित करने वाली दूसरी वायु सेना इकाई बनी।

भारतीय वायुसेना ने मलेशिया में एलआईएमए-2019, दुबई एयर-शो 2021, 2021 में श्रीलंका वायुसेना के वर्षगांठ समारोह, सिंगापुर एयर-शो 2022 और 2017-23 एयरो इंडिया-शो, सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में विमान प्रदर्शित करके भारत की स्वदेशी एयरोस्पेस क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। जबकि इसने पहले ही घरेलू स्तर पर विदेशी वायुसेना के साथ अभ्यास में भी भाग लिया था। मार्च 2023 में संयुक्त अरब अमीरात में ‘एक्स डेज़र्ट फ्लैग’ तेजस का  विदेशी धरती पर पहला ऐसा अभ्यास था।

भारतीय वायु सेना ने तेजस पर जो भरोसा जताया है, वह उसके 83 ‘एलसीए एमके-1ए’ के खरीद ऑर्डर से पैदा हुआ है, जिसमें अद्यतन अवियोनिक्स के अलावा एक एक्टिव इलेक्ट्रानिकली स्टिरॉयड रडार, अद्यतन इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट और एक बियोंड विज़ुअल रेंज मिसाइल क्षमता होगी। तेजस का नया संस्करण, बढ़ी हुई दूरी से अधिक हथियारों को दागने में सक्षम होगा। इनमें से कई हथियार स्वदेशी होंगे। एलसीए एम-के-1-ए में विमान में स्वदेशी सामग्री में पर्याप्त वृद्धि देखी जाएगी। विमान की अनुबंधित आपूर्ति फरवरी 2024 में शुरू होने की उम्मीद है। आने वाले बरसों में एलसीए और इसके भविष्य के वेरिएंट भारतीय वायुसेना का मुख्य स्तंभ बनेंगे।

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