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जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है

स्वामी विवेकानंद की जीवनी-

 रामकिंकर सिंह परिहार मुंगेली के कलम से

जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है ये आज पता चल रहा जब मैं इसे पढ़ा तो स्वामी विवेकानंद जी का पूरा जीवन आर्थिक विपन्नता और भारतीय समाज के द्वारा दिये गये अपमान और तिरस्कार में बिता ,जमीन के टुकडे के लिए उनके चाचा द्वारा उनकी मां को कोर्ट तक ले जाना ,गली- गली अपनें और परिवार की भुख मिटानें के लिए दर- दर की ठोकरें खाना यही उनके पुरे जीवन चलता रहा। 

स्वामी दयानंद सरस्वती हो या विवेकानंद जी पूरी जीवन भुख गरीबी और अपमान से भरा पड़ा है। आपको आश्चर्य होगा दोनों महापुरुष आत्महत्या तक का विचार करनें पर मजबूर हुए पर अपनें सिद्धांत और अनुशासन के पक्के रहे। करूणा दया और भारतीय समाज के उत्थान के लिए अंतिम समय तक चिंतनशील रहे। 

आज हम विवेकानंद जी का फोटो देखते  और उनके विचार पढ़तें हैं तो लगता है की हम भी विवेकानंद जी के रास्ते पर चलेंगे। विवेकानंद जी की जीवनी एक साधारण के असाधारण बननें की कहानी है ,भारतीय संस्कृति और हिंदू समाज से उनका प्रेम हमें सही मायनें में  प्रेम की परिभाषा बतलाता है,गुरू और चेले का अद्भुत प्रेम  जो शायद कही पढ़नें मिले। 

लिखनें को बहुत कुछ है अंतिम में बस यही कहुंगा अगर आपमें या परिचित में जीवन के प्रति निराशा  ,कु़ंठा का भाव हो तो विवेकानंद जी को पढ़िए आपको मिला कष्ट और अपमान विवेकानंद जी को मिले कष्ट अपमान के आगे कुछ भी नहीं फिर भी करूणा प्रेम और मजबूत मनोबल से परिपूर्ण रहे। 

संघर्ष बडा होगा सफलता उतनी ही बडी होगी परिक्षा जितनी लम्बी होगी परिणाम उतना ही बडा होगा प्रयास करते रहिये उम्मीद किसी से मत रखिये यही जीवन का मूलमंत्र है

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